राजस्थान की प्रमुख हस्तियां और उनके उपनाम
हल्दीघाटी का शेर - महाराणा प्रताप
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Maharana Pratap |
हल्दीघाटी का युद्ध मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध था। हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, 1576 को लड़ा गया था। मुगल बादशाह अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह प्रथम ने किया था। हल्दीघाटी के युद्ध में वीरता के प्रदर्शन के कारण महाराणा प्रताप को यह उपाधि दी गई। इसके अलावा महाराणा प्रताप को राणा कीका, पाथल और मेवाड़ केसरी भी कहा जाता है।
महात्मा गांधी केे पांचवें पुत्र - जमनालाल बजाज
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Jamnalal_Bajaj |
जमनालाल बजाज पूंजीपति यानी व्यापारी होते हुए भी वैरागी थे। इनका जन्म सीकर जिले के काशी का वास नामक स्थान गांव में हुआ था। महात्मा गांधी के चार पुत्र थे। कांग्रेस के सन् 1920 के नागपुर अधिवेशन में जमनालाल बजाज ने गांधीजी से कहा कि वे उनका पांचवां बेटा बनना चाहते हैं। गांधीजी ने इस पर अपनी स्वीकृति दे दी। गांधी जी ने 16 मार्च, 1922 को साबरमती जेल से जमनालाल बजाज को एक चि_ी में लिखा था, ''तुम पांचवें पुत्र तो बने ही हो, किन्तु मैं योग्य पिता बनने का प्रयत्न कर रहा हूं। दत्तक लेनेवाले का दायित्व कोई साधारण नहीं है। ईश्वर मेरी सहायता करे और मैं इसी जन्म में इसके योग्य बन सकूं।''
जमनालाल बजाज स्वयं को गुलाम नंबर चार भी कहते थे। उनके अनुसार उस समय भारतवर्ष में चार गुलाम थे- पहला भारत, दूसरा देशी राजा, तीसरा सीकर और चौथा स्वयं जमनालाल बजाज।
राजस्थान की राधा - मीराबाई
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Meera bai |
जब भी श्रीकृष्ण के भक्तों की चर्चा होगी तो उसमें राजस्थान की मीरा बाई का नाम सबसे ऊपर होगा। भक्तिकाल के महान संतों में शामिल मीरा बाई का जन्म राजस्थान 1498 ईस्वी में हुआ था। वर्तमान में आश्विन मास की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा को मीरा बाई की जयंती मनाई जाती है। इनकी कृष्ण की प्रति अनन्य भक्ति को देखते हुए ही इन्हीं राजस्थान की राधा का उपनाम दिया गया है।
राजस्थान (राजपूताने) का अबुल फजल - मुंहणोत नैणसी
मुंहणोत नैणसी का जन्म 9 नवम्बर, 1610 ईस्वी को जोधपुर में हुआ था। नैणसी जोधपुर (मारवाड़) के महाराजा जसवंत सिंह के शासनकाल में राज्य के दीवान थे। उन्हें एक इतिहासकार के रूप में ज्यादा जाना जाता है। नैणसी ने 'मुंहणोत नैणसी री ख्यात' और 'मारवाड़ रा परगना री विगत' नामक दो ग्रंथ लिखे। इसीलिए इतिहासविद मुंशी देवी प्रसाद ने इन्हें राजपूताने का अबुल फजल कहा है।
मारवाड़ का प्रताप - राव चन्द्रसेन
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Rao Chandrasen |
जोधपुर (मारवाड़) के शासक राव चन्द्रसेन मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप के समकालीन थे। जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने अपनी स्वतंत्रता के लिए मुगल सम्राट अकबर से लम्बे समय तक संघर्ष किया। उसी प्रकार राव चन्द्रसेन ने भी लगभग 20 वर्षों तक मुगल शासन से लोहा लिया। इसी कारण उन्हें मारवाड़ का प्रताप कहा जाता है। राव चन्द्रसेन को इसके अलावा भूला-बिसरा राजा अथवा नायक और महाराणा प्रताप का अग्रगामी भी कहते हैं।
कलियुग का कर्ण - राव लूणकरण
बीकानेर के संस्थापक राव बीका के बाद राव लूणकरण (1505-1525 ई) शासक बना। जिस प्रकार द्वापर युग में कर्ण अत्यधिक दानी प्रवृत्ति का था, उसी प्रकार कलियुग में राव लूणकरण की दानवीरता प्रसिद्ध है। बीठू सूजा ने 'राव जैतसी रो छंद' नामक ग्रंथ में लूणकरण को कलियुग का कर्ण कहा है। ये भी जानना आवश्यक है कि लूणकरणसर की स्थापना राव लूणकरण ने ही की थी।
राजस्थान का गांधी - गोकुलभाई भट्ट
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gokul bhai bhatt |
सिरोही के हाथल गांव में 19 फरवरी, 1898 को जन्मे गोकुलभाई दौलतराम भट्ट महात्मा गांधी से बहुत अधिक प्रभावित थे। गोकुलभाई भट्ट ने राजस्थान की देशी रियासतों में निवास कर रही जनता में राष्ट्रीय चेतना फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 1939 में गोकुलभाई की प्रेरणा से ही लोग झण्डे वाली टोपियाँ पहनने लगे थे। उन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। गोकुलभाई भट्ट बॉम्बे राज्य से भारतीय संविधान के सदस्य थे। जिस प्रकार भारत के अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानियों पर गांधीजी का प्रभाव था, उसी प्रकार राजपूताने की रिसायतों में गोकुलभाई भट्ट का प्रभाव था। इसीलिए उन्हें राजस्थान का गांधी कहा जाता है।
वागड़ के गांधी - भोगीलाल पांड्या
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Bhogilal pandya |
भोगीलाल पंड्या यानी वागड़ के गांधी का जन्म डूंगरपुर के सीमलवाड़ा गांव में 13 नवंबर, 1904 को हुआ था। पंड्या ने समाज सेवा के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी के हरिजन आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने आदिवासियों के भले के लिए बांसवाड़ा-डूंगरपुर में हरिजन सेवक संघ की शुरुआत की। राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर का कुछ हिस्सा वागड़ क्षेत्र के रूप में विख्यात है। भोगीलाल पंड्या ने इसी क्षेत्र को अपनी कर्मस्थली बनाया। इसीलिए उन्हें 'वागड़ का गांधी' कहा जाता है। सन् 1976 में भारत सरकार ने इन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया। स्वतंत्रता के पश्चात् ये प्रदेश की पहली सरकार में मंत्री भी बने।
राजस्थान की मरु कोकिला - गवरी देवी
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Gavri-Devi |
राजस्थान की प्रसिद्ध मांड गायिका गवरी देवी ने संगीत की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान कायम की थी। देश ही नहीं विदेश में भी गवरी देवी की खनकदार गायकी ने अपना जादू बिखेरा। इसी खनकदार आवाज के कारण उन्हें राजस्थान की मरु कोकिला कहा जाता है। उन्होंने मांड गायकी के अलावा ठुमरी, भजन और गजल गायन के क्षेत्र में भी प्रसिद्ध प्राप्त की थी। लोक गायिका गवरी देवी का जन्म 14 अप्रेल, 1920 को हुआ था। गवरी के पिता और माता दोनों ही बीकानेर के राजदरबारी गायक थे। वर्ष 2013 में राजस्थान सरकार ने उन्हें 'राजस्थान रत्न' पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अलावा वे 'राजा पदक', राजस्थान संगीत नाटक अकादमी तथा तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा सम्मानित हुईं।
आदिवासियों का मसीहा - मोतीलाल तेजावत
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motilal tejawat |
मोतीलाल तेजावत का जन्म सन् 1888 ई. में उदयपुर के झाड़ोल में स्थित कोल्यारी गांव में हुआ था। आदिवासियों के बीच बावजी के नाम से प्रसिद्ध मोतीलाल तेजावत को 'आदिवासियों का मसीहा' इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि उन्होंने उनके लिए जीवनभर संघर्ष किया। अपने जीवन की शुरुआत में ये झाड़ोल ठिकाने में कामदार थे, लेकिन आदिवासियों भीलों, गरासियों और किसानों के शोषण के कारण इन्होंने नौकरी छोड़कर इन्हें जागरुक करना शुरू कर दिया। इनकी मेहनत रंग लाई और सन् 1921 की वैशाखी पूर्णिमा को चित्तौड़ के मातृकुण्डियां नामक स्थान पर आयोजित मेले में आदिवासियों की पंचायत हुई। समस्याओं से मेवाड़ महाराणा को अवगत कराने के निर्णय लिया गया। इस मौके पर मोतीलाल तेजावत को नेता चुना गया। तेजावत ने सभी आदिवासियों को एकता की शपथ दिलाई, इसलिए यह आंदोलन 'एकी आंदोलन' कहलाया। आंदोलन फैलता चला गया। मोतीलाल तेजावत को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। बाद में रिहा होने पर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया। इन्हें 'आदिवासियों के लिए गांधीजी का दूत' भी कहा जाता है।