राजस्थान के इतिहास, भूगोल और संस्कृति आदि विषयों से संबंधित सामान्य ज्ञान फैक्ट
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-381. उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन : इन वनों में बांस, सिरस, जामुन, आम, बेल, रोहिड़ा के वृक्ष प्रमुखता से मिलते हैं। ऐसे वन राज्य के सिरोही जिले में स्थित आबू पर्वत के चारों तरफ लगभग 32 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हैं।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-382. रावली टाटगढ़ वन्यजीव अभयारण्य : 1983 ई. में इस अभयारण्य की स्थापना अजमेर, पाली और राजसमंद जिलों के 463 वर्ग किमी क्षेत्र में की गई। यहां पर बघेरा, खरगोश, तेंदुए, जरख आदि पाए जाते हैं।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-383. सोनाड़ी भेड़ की नस्ल है। इसका उपनाम है- चनोथर। बहुत मोटी ऊन जो गलीचे के लिए उपयुक्त होती है। सोनाड़ी नस्ल उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौडगढ़़, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा में पाई जाती है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-384. मुर्रा (खण्डी) : भैंस वंश की यह नस्ल अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है। जयपुर, उदयपुर, अलवर, गंगानगर, भरतपुर में पाई जाती है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-385. राठी नस्ल की गाय को 'राजस्थान की कामधेनू' भी कहा जाता है। यह बीकानेर, श्रीगंगानगर, जैसलमेर में पाई जाती है। यह अच्छी मात्रा में दूध देने के लिए प्रसिद्ध है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-386. टांका वर्षा के जल संग्रहण की प्रचलित विधि है जिसका निर्माण घरों अथवा सार्वजनिक स्थलों पर किया जाता है। वास्तव में वर्तमान में रेन वाटर हार्वेस्टिंग इसी का परिष्कृत रूप है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-387. खनिजों का अजायबघर : राजस्थान में खनिजों की उपलब्धता लगभग पूरे राज्य में है इसलिए राजस्थान को खनिजों का अजायबघर कहते हैं। इसके अलावा राजस्थान को 'खनिजों का संग्रहालय' भी कहते हैं।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-388. खारे पाने की झीलें : उत्तरी-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग में खारे पानी की झीलें पाई जाती हैं। टेथिस सागर का अवशेष होना यहां की झीलों के खारेपन का मुख्य कारण है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-389. खेजड़ली मेला : जोधपुर के खेजड़ली में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को खेजड़ली मेला भरता है। यहां पेड़ों की रक्षार्थ अनेक लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इसी याद में प्रतिवर्ष मेला भरता है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-390. करणी माता का मंदिर : करणी माता राठौड़ राजवंश की कुलदेवी हैं। बीकानेर के देशनोक में करणी माता का मंदिर स्थित है। करणी माता को चूहों की देवी कहा जाता है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-391. गिरी सुमेल का युद्ध : 5 जनवरी 1544 ई. में वर्तमान जैतारण (पाली) के निकट गिरी सुमेल स्थान पर दिल्ली के अफगान शासक शेरशाह सूरी व राव मालदेव के मध्य युद्ध हुआ था। इस युद्ध में शेरशाह सूरी छल-कपट से विजय हुआ।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-392. नीमराणा की बावड़ी : अलवर जिले में स्थित इस बावड़ी का निर्माण राजा टोडरमल ने करवाया था। यह बावड़ी 9 मंजिला है और हर मंजिल की ऊंचाई लगभग 20 फीट है। इसमें 170 चरण हैं, और जैसे-जैसे ऊपर से नीचे जाते हैं निर्माण छोटा होता जाता है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-393. चार भुजा वाले देवता वीर कल्ला जी (कल्ला राठौड़) को कहा जाता है। सन् 1567 में मुगल शासक अकबर के विरुद्ध वीर कल्लाजी ने जयमल राठौड़ को कंधे पर बिठाकर युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। इसी कारण इन्हें चार भुजा वाले देवता कहा जाता है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-394. संत सुंदरदास जी का जन्म सन् 1596 में दौसा के खण्डेलवाल वैश्य परिवार में हुआ। इनके प्रमुख ग्रंथ- सुन्दर विलास, सुन्दर सागर, सुंदर ग्रंथावली एवं ज्ञान समुद्र हैं। इनका निधन 1707 ई. में जयपुर जिले के सांगानेर कस्बे में हुआ।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-395. बालसमंद झील : जोधपुर जिले में स्थित इस झील का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासक बालकराव प्रतिहार ने 1159 ई. में करवाया था। इस झील के किनारे होटल लेक पैलेस स्थित है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-396. धामण घास का वानस्पतिक नाम सेन्क्रस सेटीजेरस (Cenchrus setigerus) है। स्थानीय स्तर पर इसे मोडा धामन/काला धामन कहा जाता है। यह औषधीय घास मधुमेह में प्रभावी है तथा दुधारू पशुओं के लिए भी लाभदायक है। धामण घास जैसलमेर, बाड़मेर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर व उदयपुर जिलों में पाई जाती है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-397. बागोर (भीलवाड़ा) : यहां उत्तर पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। कोठारी नदी के किनारे स्थित यह सभ्यता 3000 ई.पू. की मानी गई है। यहां डॉ. वीरेन्द्र नाथ मिश्र व डॉ. एल.एस. लैशनि के नेतृत्व में उत्खनन कार्य हुआ। यहां के निवासी युद्ध, शिकार व कृषि प्रेमी एवं मांसाहारी थे।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-398. पाबूजी राठौड़ लक्ष्मण के अवतार माने जाते हैं। पाबूजी का विवाह अमरकोट के सोढ़ा शासक राजा सूरजमल की पुत्री सुप्यारदे के साथ हुआ। उनका बोध चिह्न भाला, केसरी कालमी घोड़ी और बायीं ओर झुकी पाग उनकी विशेष पहचान थी।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-399. जयपुर शैली : सालिगराम, साहिबराम, रामजीदास एवं रघुनाथ जयपुर शैली के प्रमुख चित्रकार थे। इस शैली में केसरिया, हरा, लाल एवं पीला रंग प्रधान है। सवाई प्रताप का समय जयपुर शैली का स्वर्णकाल माना जाता है।
राजस्थान सामान्य ज्ञान फैक्ट-400. सेवाडिय़ा पशु मेला : जालौर जिले के रानीवाड़ा में भरने वाले इस प्रसिद्ध मेले को आपेश्वर पशु मेला भी कहा जाता है। इस मेले की शुरुआत सन् 1955 में बडग़ाव के मालमसिंह द्वारा की गई थी। सामान्यत: मेले की शुरुआत प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल एकादशी से होती है।
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